बढ़ती हुई आबादी की आजीविका सुरक्षा सुनिश्चित करने में कृषि वृद्धि और विकास के महत्व को पहचानते हुए,राजस्थान सरकार ने राज्य में कृषि शिक्षा,अनुसंधान और प्रसार को विकसित करने को उच्च प्राथमिकता दी। वर्ष 1987 में बीकानेर में एक अलग कृषि विश्वविद्यालय बनाया गया। इस विश्वविद्यालय का सेवा क्षेत्र सम्पूर्ण राजस्थान था। 1 नवंबर, 1999 को,राज्य का दूसरा कृषि विश्वविद्यालय,महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,उदयपुर (मप्रकृप्रौवि), (प्रारंभिक नाम कृषि विश्वविद्यालय, उदयपुर) राजस्थान सरकार के अध्यादेश संख्या 6, 1999,जो मई, 2000 में एक अधिनियम बन गया के माध्यम से राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय,बीकानेर के विभाजन से अस्तित्व में आया।
कृषि विश्वविद्यालय,कोटा (कृविको) 14 सितंबर, 2013 को राजस्थान सरकार 2013 के अधिनियम संख्या 22 के प्रख्यापन के माध्यम से महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय,उदयपुर (मप्रकृप्रौवि) और स्वामी केशवानंद राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय (स्केराकृवि),बीकानेर (जिसे पहले राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय,बीकानेर के नाम से जाना जाता था) के विभाजन से अस्तित्व में आया। यह देश के सबसे बड़े राज्य में फसलों, फसल प्रणाली, जलवायु,मिट्टी की विशेषताओं आदि सहित भौतिक संरचनाओं में व्यापक विविधताओं को देखते हुए किया गया है, जो कि दक्षिण पूर्वी राजस्थान के लिए स्थान-विशिष्ट कार्यक्रमों को नयी उर्जा देता है। 23 सितंबर, 2013 को माननीय कुलपति के नियुक्त होने के पश्चात् इस विश्वविद्यालय ने पूरी तरह से काम करना शुरू कर दिया।
विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र में दक्षिण पूर्व राजस्थान के छह जिलों कोटा, बारां, बूंदी, झालावाड़, करौली और सवाई माधोपुर में फैले घटक कॉलेज, कृषि अनुसन्धान केंद्र व उपकेंद्र, कृषि विज्ञान केंद्र सहित सभी परिसर शामिल हैं।