Frequently Asked Questions
सामान्य समस्याऐं एवं उनका निदान
खरीफ फसलेंः-
- सोयाबीन बुवाई के 35-40 दिन बाद लगाातार वर्षा होने पर खारू घास व मोथा खरपतवार की समस्या के निदान की आवश्यकता है।
- चूंकि खारू घास देरी से उगता है अतः खरपतवार नियंत्रण हेतु सिफारिश दवा क्यूजिलाफाॅप ईथाइल 5 ई.सी. 50 ग्राम या फिनाक्साप्रोप पी-इैथाइल 9.3 ई.सी. 70 ग्राम प्रति हैक्टर को बुवाई के 15-20 दिन बाद की सिफारिश दी गई है लेकिन देरी से छिड़काव करने पर फसल पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः हाथ से निराई-गुडाई करें।
- मोथा नियंत्रणः बुवाई के उपरान्त सल्फेन्ट्राजोन 48 प्रतिशत का 360 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति है. को 500 लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के बाद एवं अंकुरण पुर्व छिड़काव करके मोथा की रोकथाम की जा सकती है। मोथा खरपतवार के नियंत्रण हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई करें। आवश्यकतानुसार निदाई गुड़ाई करें।
- गत वर्षो में देखा गया है कि सोयाबीन फसल की पकाव अवस्था में फली चिपक जाती है, जिसके कारण दाना नही बनता है, अगर बनता भी है भी है तो गुणवता काफी खराब होती है। जिसके कारण पैदावार कम आती है। प्रभावित नियत्रण बताये।
- सोयाबीन की फसल में फली चिपक जाने का कारण संभवतः उस समय मृदा में नमी की कमी होना या अधिक बरसात से जल भराव हो सकता है। नमी की कमी होने पर फसल की हल्की सिचाई करें जिससे फली में दाना सही भर जाय एवं उचित जल निकास का प्रबंधन करें । फसल में फली झुलसा रोग (पाॅड ब्लाइट) के प्रबंधन के लिए पिकोक्सिस्ट्रोबिन 7.05ः + प्रोपिकोनाजोल 11.71ः एस सी 1000 मिली लीटर प्रति हेक्टर की दर से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। मृदा परीक्षण के आधार पर पोषक तत्त्व प्रबंधन करें।
- समस्या ग्रस्त क्षैत्र का फसल अवधि के दौरान वैज्ञानिक दल का गठन कर भ्रमण करवाया जावे जिससे विशिष्ट कारण का पता लगाने के बाद ही प्रभावी प्रबंधन किया जा सके।
- सोयाबीन के लिये कोई नई किस्म पर के बारे में बताया जावें।
- कोटा ज़ोन के लिये सोयाबीन की नवीन संस्तुत किस्मे जे एस 20-98 (95-98 दिन)ए जे एस 20-94 (95-98 दिन)ए जे एस 20-116 (95-100 दिन) एवं एन आर सी 127 (97-101 दिन) किस्में सिफारिश की गई हैं। इनके अलावा सोयाबीन की उन्नतशील किस्में एन.आर.सी.-127, जे.एस. 20-29, जे.एस. 20-34 सिफारिश में हैं।
- विगत वर्षो में सोयाबीन की फसल उत्पादन की दृष्टि से निष्फल हो रही है, उत्पादन लागत में ज्यादा आ रही है इसके विकल्प की आवश्यकता है।
एकल फसल प्रणाली, अनियमित वर्षा एवं तकनीकी ग्राह्यता की कमी के कारण उत्पादकता मे कमी आ रही है।
निदानः
- संस्तुत बीज दर (80 कि.ग्रा./है.) का प्रयोग करें व पंक्तियों में 30 से.मी. की दूरी पर बुवाई करें।
- विभिन्न अवधि की किस्मों कि बुवाई करें।
- समन्वित पौषक तत्व प्रबंधन अपनाये।
- समन्वित खरपतवार एवं कीट-व्याधि नियंत्रण करे।
- उचित फसल चक्र अपनाये।
- अकुरण से पुर्व खरपतवारनाशक दवा का प्रयोग करें
- पुष्पावस्था पर सुझाये गये कीटनाशी दवाओं का प्रयोग करना।
- पुष्पावस्था व फली बनते समय फसल में पानी की कमी को रोकने हेतु सिंचाई करना।
- सोयाबीन की वैकल्पिक फसलों में उडद, मूंग एवं मक्का आदि है।
- सोयाबीन मे अफलन की समस्या का समाधान।
- अफलन की समस्या अधिक वर्षा या कीट का प्रकोप होने की वजह से हो सकती है। समाधान हेतु सोयाबीन में उचित बीज-दर का उपयोग करे एवं पौधो की संख्या आवश्यकतानुसार रखें ।अगर फूल अवस्था में कीट का प्रकोप हो तो अनुशंसित कीटनाशी का प्रयोग करें। तकनीकी विस्तार प्रशिक्षण आयोजित किये जावें।
- सोयाबीन फसल की पकाव अवस्था में फली चिपक जाती है, जिसके कारण दाना नही बनता है, अगर बनता भी है भी है तो गुणवता काफी खराब होती है। जिसके कारण पैदावार कम आती है।
- सोयाबीन की फसल में फली चिपक जाने का कारण संभवतः उस समय मृदा में नमी की कमी होना या अधिक बरसात से जल भराव हो सकता है। नमी की कमी होने पर फसल की हल्की सिचाई करें जिससे फली में दाना सही भर जाय एवं उचित जल निकास का प्रबंधन करें । फसल में फली झुलसा रोग (पाॅड ब्लाइट) के प्रबंधन के लिए पिकोक्सिस्ट्रोबिन 7.05ः $ प्रोपिकोनाजोल 11.71ः एस सी 1000 मिली लीटर प्रति हेक्टर की दर से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव करें। मृदा परीक्षण के आधार पर पोषक तत्त्व प्रबंधन करें।
- उड़द में पीतशिरा मोजेक व पीलिया रोग का निदान एवं रोग रोधी किस्म की जानकारी दें।
- कोटा उडद-3 , के.यू. 96-3, पी. यू 31 पीत शिरा विषाणु रोग प्रतिरोधी किस्में है। प्रताप उड़द 1 एवं मुकुन्दरा उड़द 2 मोजेक के प्रति सहनशील किस्मे है।
- पीतशिरा विषाणु रोग के प्रभावी नियंत्रण हेतु रोग के वाहक रसचूषक कीटों की रोकथाम हेतु डायमिथोएट 30 ईसी एक लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से छिड़काव करें तथा आवश्यकता पड़ने पर 15-20 दिन बाद छिड़काव दौहराये।
- लोह तत्व की कमी या मृदा पी. एच मान अधिक होने की स्थिति में उत्पन्न पीलिया रोग के निदान के लिए फैरस सल्फेट (हरा कसीस) 0.5 प्रतिशत या गन्धक का तेजाब 0.1 प्रतिशत घोल का छिडकाव करें।
- उड़द की खड़ी फसल में मोथा खरपतवार के नियंत्रण हेतु खरपतवारनाशी की आवश्यकता हैं।
- मोथा खरपतवार के नियंत्रण हेतु ग्रीष्मकालीन जुताई करें। संस्तुत अंकुरण पुर्व खरपतवारनाशियों का प्रयोग करें। आवश्यकतानुसार निदाई गुड़ाई करें।
- उड़द व मूंग में अकूरण पश्चात् खरपतवारनाशी की जानकारी दें।
- उड़द व मूंग में बुवाई के 15-20 दिन बाद ईमाजिथापायर 10 प्रतिशत एस. एल. 55 ग्राम सक्रिय तत्व/है0 भूमि मे प्र्याप्त नमी की स्थिति मे छिडकाव करे या सोडियम एसीफ्लोरफेन 16.5 प्रतिशत $क्लोड़िनाफाॅप प्रोपारजिल 8 प्रतिशत ई.सी. (मिश्रित उत्पाद) का 187.5 ग्राम सक्रिय तत्व/है (व्यवसायिक दर 750 मिली/है) की दर से बुवाई के 15-20 दिन बाद छिड़काव करने पर संकरी एव चौड़ीपत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।
- उड़द व मूंग की खड़ी फसल में फोमेसाफेन 11.1 प्रतिशत $ फ्लूजीफाॅप पी ब्यूटाइल 11.1 प्रतिशत एस.एल. (मिश्रित उत्पाद) का 220 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेै. (व्यावसयिक दर 1.0 ली. प्रति हैे.) अथवा प्रोपेक्यूजाफाॅप 2.5 प्रतिशत + इमेजिथापायर 3.75 प्रतिशत एम.ई. (मिश्रित उत्पाद) 83.3 ग्राम सक्रिय तत्व प्रति हैे. (व्यावसायिक दर 1350 मि.ली. प्रति हैे.) की दर से बुवाई के 15-20 दिन बाद छिड़काव करने पर संकरी व चैड़ी पत्ती वाले खरपतवारों का प्रभावी किया जा सकता है।
- सोयाबीन, उड़द, मंूग में अकुंरण से 4-5 पत्ती अवस्था तक 15-20 प्रतिशत पौधौ की मृत्यु हो जाती हैं। अतः इनके समाधान हेतु उपयुक्त तकनीकी ज्ञान की आवश्कता हैं।
- उक्त समस्या बीज एवं मृदा जनित रोगों से हो सकती है। मृदा जनित रोग सोयाबीन, उड़द एवं मुंग को प्रभावित करते है जिनके प्रबंधन के लिये संस्तुत बीज उपचार करके ही बुवाई करें ।
- धान में भूरा फुदका कीट (BPH का अत्यन्त प्रकोप देखा गया है। अतः इसके नियंत्रण हेतु जानकारी दें।
- सही समय व उचित विधि से गुणवतायुक्त संस्तुत कीटनाशियों प्रयोग किया जावे।
- प्रकोप होने पर एसीफेट 75 एस.पी. 500 ग्राम प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें तथा आवश्यकता पड़ने पर 15-20 दिन बाद छिड़काव दौहराये। छिडकाव संभव नही होने पर कार्बोफ्युरान 3ळ 20 किग्रा. प्रति हैक्टेयर की दर से भुरकाव करे।
- कीटनाशकों का उपयोग करने से पहले पानी को निकाल दें और स्प्रे को पौधों के आधार की ओर निर्देशित करें।
- बारी-बारी से गीला और सुखाकर सिंचाई को नियंत्रित करें।
- नाइट्रोजन के अत्यधिक उपयोग से बचें।
- धान में नेक ब्लास्ट की समस्या का प्रभावी नियत्रण के उपाय सुझावें।
- धान की फसल में नैक ब्लास्ट रोग की रोकथाम के लिए रोग के लक्षण दिखाई देते ही टेबुकोनाजोल 50ः ट्राइफ्लोक्सीस्ट्रोबिन 25ः डब्ल्यू जी (मिश्रित उत्पाद) 0.4 ग्राम प्रति लीटर की दर से पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकता होने पर 15 दिन बाद पुनः छिड़काव करंे।
- काली मिट्टी हेतु उपयुक्त कम समय में परिपक्व होने वाली अरहर की किस्मों की आवश्यकता हैं।
- अरहर की अल्पावधि किस्म आई. सी. पी. एल. 88039 (140-150 दिन) तथा पी. ए.यू. 881 (135-140 दिन). ए.एल. 882 (140-150 दिन) की खण्ड़ में सिफारिश की गई है।
- मक्का फसल में प्राईवेट किस्मों के समान अधिक उपज देने वाली किस्मों की आवश्यकता है। क्षेत्र के लिये हाईब्रिड मक्का की कोनसी किस्म पैदावार के लिये उपयुक्त है।
- प्रताप संकर मक्का-3, प्रताप मक्का-3, प्रताप मक्का-5, प्रताप मक्का-9, प्रताप क्यूपीएम संकर-1 आदि अधिक उपज देने वाली किस्में संस्तुत हैं।
- मक्का में फाल आर्मी वर्म कीट की समस्या का समाधान बताये।
- मक्का मे फाल आर्मी वर्म के नियन्त्रण हेतु बुवाई के 20 से 25 दिन बाद क्लोरेंट्रानिलीप्रोल18.5 एस सी 200 मिली प्रति है. अथवा फ्लुबेण्डमाईड 480 एस सी 150 मिली प्रति है. अथवा इमामेक्टिन बेन्जोएट 5 एस जी 200 ग्राम प्रति है. की दर से 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें तथा आवश्यकता पड़ने पर बुवाई के 40 से 45 दिन बाद दूसरा छिड़काव करे।
- मक्का फसल की छोटी अवस्था में स्टेम बोरर की समस्या का प्रभावी नियंत्रण हेतु उपाय बताये ? 16.
- रोकथाम हेतु बुआई के 15 व 30 दिन पर कार्बोफुरान 3: कण 5 से 7.5 किलो प्रति है0 की दर से पोटो मे डाले।
- यदि 10 प्रतिशत से अधिक प्रकोप होने क्लोरन्ट्रालीप्रोले 18.5 एस.सी. 150 मिली प्रति है0,की दर से छिड़काव करे।
रबी फसलेंः-
- सरसांे फसल में सिंचाई के बाद स्टेम रोट बीमारी की समस्या आती है इस रोग के नियंत्रण हेतु उपाय बताये।
- बुवाई के पूर्व कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम/किग्रा या ट्राईकोडर्मा 10 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज दर सेे बीज उपचारित करें। ट्राईकोडर्मा 2.5 ग्राम प्रति/है. की दर से गोबर की खाद में मिलाकर डाले।
- 25 दिसम्बर से 15 जनवरी के मध्य सिंचाई नही करे एवं जनवरी के प्रथम सप्ताह में कार्बेन्डाजिम 50 डब्ल्यू.पी. 0.2 प्रतिशत का बुवाई के 45-50 एवं 65-70 दिन पर छिड़ाकाव छिड़काव करें।
- प्रभावित क्षेत्रों में हल्की सिंचाई करें।
- स्टेम रोट (तना गलन) से पूर्णतया प्रतिरोधी कोई भी किस्म नहीं हैं। इस पर अनुसंधान कार्य जारी हैं।
- सरसांे फसल में ओरोबेन्की खरपतवार की समस्या के समाधान की आवश्यकता है।
- उचित फसल चक्र अपनायें।
- सोयाबीन तेल की 2 बूंद को ओरोबेन्की के प्रहोर पर ड़ालकर ओरोबेन्की की प्रति इकाई संख्यां में कमी की जा सकती है। उचित फसल चक्र अपनायें।
- अंकुरण पश्चात फसल में 30 व 55 दिन पर ग्लाइफोसेट (25 व 50 ग्राम/हे.) व 1 प्रतिशत अमोनियम सल्फेट का घोल मिलाकर निर्देशित छिड़काव करना।
- सरसों फसल में प्राइवेट किस्मों की तुलना मे सरकारी किस्मों की उपज कम है। अधिक उपज वाली किस्मांे की आवश्यकता है।
- सरसांे की गिरिराज व आर एच 725 किस्में उचित शस्य प्रबंधन करने पर प्राइवेट कम्पनियों द्वारा उत्पादित किस्मों की तुलना मे अच्छी उपज देती है।
- सरसांे की डीआरएमआर 1165-40 किस्म समय पर बुआई के लिए उपयूक्त है। इसमें तेल की मात्रा लगभग 40-42.5 प्रतिशत होती है। यह किस्म 133-151 दिन में पक कर लगभग 20-26 क्ंिवटल प्रति हैक्टर की उपज देती है।
- सरसांे फसल में पोस्ट इमरजेन्स खरपतवारनाशी की आवश्यकता है।
- सरसांे की फसल में घास वाले खतपतवारों का प्रभावी रोकथाम के लिए बुवाई के 25 दिन पर सिंचाई के उपरान्त, क्लोडिनाफाॅप-प्रोपार्जिल 15 प्रतिशत डब्ल्यूपी 0.06 किलोग्राम सक्रिय तत्व प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।
- प्रभावी रोकथाम के लिए 25 और 50 दिनों पर हाथों द्वारा निराई-गुड़ाई करें।
- सरसों में सफेद रोली एवं झुलसा हेतु समाधन
- सफेद रोली से बचाव के लिये बीज को मेटेलेक्सिल 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करके बोयें।
- खड़ी फसल में रोगो के लक्षण दिखाई देते ही 1.5़ किलो मेन्कोजेब/हैं का 0.2 प्रतिशत पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। आवश्यकतानुसार 20 दिन बाद छिड़काव दोहरावें।
- चना की खड़ी फसल में खरपतवार नियंत्रण हेतु खरपतवारनाशी की आवश्यकता।
- चना की खड़ी फसल में खरपतवारों के नियंत्रण हेतु उचित खरपतवारनाशी दवा पीओपी में नही है।
- चना की फसल में अंकुरण पुर्व पेन्ड़ीमिथेलीन 30 ई.सी./1.0 किलो सक्रिय तत्व/हे. (व्यवसायिक दर 3.3 लीटर/हे) या पेन्ड़ीमिथेलीन 38.7 सी.एस. / 1.0 किलो सक्रिय तत्व/हे. (व्यवसायिक दर 2.6 लीटर/हे.) को 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव तथा बुवाई के 40-45 दिन पर निराई गुडाई सेे खरपतवारों की प्रभावी रोकथाम के साथ अधिक उपज प्राप्त होती है।
- चना फसल में उखटा व काॅलर रोग का प्रकोप देखने में आया है। इस रोग के नियंत्रण के उपाय तथा रोगरोधी किस्मो की सिफारिश की आवश्यकता है।
- उखटा रोग के नियंत्रण हेतु कार्बेण्डाजिम 0.75 ग्राम $ थाइरम 1.0 ग्राम प्रति किग्रा बीजोपचार करें। खडी फसल में उखटा रोग के नियत्रण पर अनुसंधान कार्य जारी हैं।
- काॅलर रोट के नियंत्रण हेतु कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत $ थाइरम 37.5 प्रतिशत 1.0 ग्राम प्रति किग्रा बीजोपचार करें। अनुसंधान कार्य जारी है।
- कोटा काबुली चना-2 व कोटा काबुली चना-3 किस्म उखटा रोग से प्रतिरोधी पायी गई हैं। सी.एस.जे. 515 किस्म उखटा एवं काॅलर रोट से मध्यम प्रतिरोधी पायी गई हैं।
- गेहूं फसल की उचित बीज दर क्या है जबकि कृषकों द्वारा 150 कि.ग्रा. प्रति हे. बीज उपयोग किया जा रहा है।
- सामान्य परिस्थितियों में समय पर बुवाई के लिये गेहूं की संस्तुत बीज दर 100 कि.ग्रा. एवं देरी से बुवाई के लिये 125 कि.ग्रा. प्रति हे. है जो कि अनुसंधान परिणामों पर आधारित है। कृषकों द्वारा बीज के साथ में डी.ए.पी. मिलाकर बोने से अंकुरण पर प्रभाव पड़ता है अतः बीज को डी.ए.पी. में मिलाकर नही बोये। सिफारिश अनुसार बीज की मात्रा उचित विधि से बुवाई करने पर अधिक उपज देती है।
- गेहूं में परिपक्वता के समय दाने पर काले धब्बे दिखाई देते है। जिससे दाने कम निकलते है।
- गेहूं के बीज को टेबुकोनाजोल 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से भी उपचारित कर सकते हैं। तथा खड़ी फसल में रोकथाम के लिये डफ अवस्था में थियोफेनेट मिथाईल 0.1 प्रतिशत का घोल बनाकर छिडक़ाव करें।
- कृषको द्वारा खरीफ में धान एवं रबी में गेहूं फसल अवशेष जलाये जाते हैं। फसल अवशेष प्रबन्धन की जानकारी दें।
- रबी में गेहूं फसल के अवशेषो का प्रबन्धन हेतु सिफारिश दी गई है जो इस प्रकार हैः गेहूं-सोयाबीन फसल चक्र में गेहूं फसल के अवशेषो का प्रबन्धन हेतु कम्बाइन की कटाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर खेत जुताई पर आने के समय 25 किग्रा यूरिया/है. एवं 2 किग्रा सेलुलोलाइटिक माइक्रोब्स को 50 किग्रा पका हुआ गोबर/है. में मिलाकर भुरकाव करके तुरन्त मिट्टी में मिला देवें।
- मसूर फसल में फ्युजेरियम विल्ट रोग की समस्या है।
- जिन खेतों में फ्युजेरियम विल्ट रोग लग चूका हो उन में उचित फसल चक्र अपनाये और 3 वर्ष तक मसूर का फसल न बोयें। उखटा रोग अवरोधी किस्म बोयें। मसूर की किस्में कोटा मसूर-1, कोटा मसूर-2, कोटा मसूर-4 उखटा रोग के प्रति मध्यम प्रतिरोधी है।
- धनियां की फसल मे अधिक उपज देने वाली एवं लोगिंया प्रतिरोधी किस्मे की आवश्यकता।
- धनिये की अधिक उपज देने वाली एवं लोगिंया प्रतिरोधी किस्मे प्रताप राज धनिया (आर. के. ड़ी. 18) एवं आर ड़ी 385 (राजेन्द्र धनिया 1) ख्ंाड ट की पीओपी में सम्मिलित है।
- धनियां की फसल मे लोंगिया रोग नियंत्रण हेतु उपाय बतायें ?
- लोंगिया रोग हेतु हैक्साकोनाजोल 5 ई.सी. या प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी. का 2.0 मिली./क्रिग्रा बीज की दर से बीजोपचार करें एवं खड़ी फसल में हैक्साकोनाजोल 5 ई.सी. या प्रोपीकोनाजोल 25 ई.सी. का 2 मिली/लीटर की दर से बुआई के 45-60 तथा 75 दिन बाद छिड़काव छिडक़ाव करें।
उद्यानिकी फसलेंः-
- संतरा बगीचो में अफलन की समस्या का समाधान/फल मक्खी का प्रकोप फूलों/फलों झड़ना फलन में अनियमितता।
संतरा में अफलन के मुख्य कारण पोषण, बहार एवं कीट-रोग प्रबंधन का अभाव है।
- फूल झड़ने से रोकने के लिए फूल आने के एक माह पुर्व 1 मि.ली. प्लेनोफिक्स /4-5 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर देना चाहिए।
- अपरिपक्व फलों को गिरने से रोकने के लिए फलों का आकार मटर के समान होने पर 1 मि.ली. प्लेनोफिक्स /4-5 लीटर पानी मे या 1 ग्राम 2, 4 डी प्रति 100 लीटर पानी में घोलकर पेड़ों पर छिड़काव करना चाहिए।
- फूल निकलते समय सिंचाई नही करें परन्तु फूल से फल बनते समय सिंचाई अवश्य करें।
- साथ ही इसी क्रम मे बहार प्रबंधन बेहद आवश्यक है। हमारे मुख्यतः यहां मृग बहार ली जाती है परतुं पिछले कई वर्षो से, समय पर वर्षात का नही होना भी संतरा के पेडों को अफलन की ओर ले जाता है। अतः जहां अफलन की समस्या नियमित आ रही हो ओर किसान के पास सिंचाई जल उपलब्ध है तो उस किसान भाई को अम्बें बहार की सलाह देनी चाहिए है। इस फलन हेतु किसानों को रबी मौसम मे अन्तः फसल नही लेकर संतरा के बाग को दिसंबर-जनवरी माह मे स्ट्रेस (तवण) देनी होगी।
- संतरा बगीचो में काली मस्सी की समस्या का समाधान
- काली मस्सी (कजली रोग) केप्नोडियम सिट्री यह रोग संतरा का बहुत ही हानिकारक रोग है जो सिट्रस सिला नामक कीट की विस्टा पर फफंूद के रुप में पैदा होता हैं इसके नियंत्रण हेतु सारणी अनुसार उपाय करें:-
दवाई का नाम |
मार्च माह |
जुलाई माह |
नवम्बर माह |
कीटनाशी |
डाइमेथोएट 2 मि.ली. या क्यूनालफाॅस 1.5 मि.ली. या प्रोफेनोफाॅस 1.5 मि.ली. ऐसिफेट 1.25 ग्राम प्रति लीटर |
डाइमेथोएट 2 मि.ली. या क्यूनालफाॅस 1.5 मि.ली. या प्रोफेनोफाॅस 1.5 मि.ली. ऐसिफेट
1.25 ग्राम प्रति लीटर |
डाइमेथोएट 2 मि.ली. या क्यूनालफाॅस 1.5 मि.ली. या प्रोफेनोफाॅस 1.5 मि.ली. ऐसिफेट 1.25 ग्राम प्रति लीटर |
कवकनाशी |
कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या काॅपर आक्सीक्लोराइड 2ग्राम/लीटर |
कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या काॅपर आक्सीक्लोराइड 2ग्राम/लीटर |
कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या काॅपर आक्सीक्लोराइड 2 ग्राम/लीटर |
नोटः सारणी में दी गई दवाईयांे में से किसी एक कीटनाशी व फफंूदनाशी का मिश्रण बदलते हुए क्रम से छिडकाव करें साथ ही कजली फफंूद की परत पत्तों पर अधिक दिखाई दे तो स्टार्च 20 ग्राम प्रति लीटर मिलाकर छिड़काव करें तथा जरुरत होने पर 15 दिन बाद पुनः छिडकाव दोहरावे।
- मिर्च में पत्ती मोड़क, जैसिड, सफेद मक्खी एवं बरुथि की समस्या का समाधान।
- मिर्च में पत्ती मोड़क लक्षण दो कीटो के आक्रमण द्वारा होते है। रसचूसक कीट सफेद मक्खी जैसे थ्रिफस व जैसिड के नियंत्रण के लिए अन्तः प्रवाही कीटनाषियों जैसे इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. 0.3 मि.ली. या डाइफेन्थिरोन 1 ग्राम या डाइमेथोएट 2.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करे।
- बरुथि के नियंत्रण के लिए प्रोपारजाइट 57प्रतिषत 2.0-2.5 मि.ली. प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करे ।
- सफेद मक्खी नियन्त्रण हेतु बायोएजेन्ट एजाडीरेक्टीन 10000 पीपीएम / 2 एम.एल. प्रति लीटर पानी ़ लैकानीसिलियम लैकानी / 5 एम.एल. प्रति लीटर पानी का पर्णीय छिडकाव 10 दिन के अन्तराल से आवष्यकतानुसार करने पर प्रभावी नियन्त्रण होता है।
- मिर्च में सफेद मक्खी नियन्त्रण हेतु बायोएजेन्ट एजाडीरेक्टीन 10000 पीपीएम / 2 एम.एल. प्रति लीटर पानी ़ लैकानीसिलियम लैकानी / 5 एम.एल. प्रति लीटर पानी का पर्णीय छिडकाव 10 दिन के अन्तराल से आवष्यकतानुसार करने पर प्रभावी नियन्त्रण होता है।
- मिर्च की फसल में थ्रिप्स का प्रकोप।
- मिर्च की फसल मे थ्रिप्स (पर्णजीवी) की रोकथाम हेतु इमिडाक्लोप्रिड 48ः एफएस 10 मिली/किग्रा से बीजोपचार व खेत में पौध रोपण से पूर्व इमिडाक्लोप्रिड17.8 एस एल 2 मिली/ली की दर से पौध उपचार करें तथा खडी फसल में डाईफेनथ्यूरोन 50: डब्ल्यू दृपी. 1.0 ग्राम प्रति ली पानी में घोलकर कीट का प्रकोप प्रारम्भ होने पर आवष्यकतानुसार 15 दिन के अन्तराल पर पर्णीय छिडकाव करें ।
- प्याज में थ्रिप्स नियंत्रण के उपाय बतायें?
- मिथाईन डेमेटोन का 1.0 मिली/ली. या थायोक्लोप्रिड 24 एस.सी. 0.3 मिली/ली. पानी की दर से छिड़काव करें।
- लहसुन मे थ्रिप्स व माईटस कीेटों का प्रभावी नियंत्रण बतावें।
- थ्रिप्स के नियंत्रण हेतु डाइमिथोएट 30 ई. सी. या मिथाइल डिमेटान 25 ई.सी. 1 मिली/लीटर अत्यधिक प्रभाव होने पर थायोक्लोप्रिड 21.7 एस.सी. 0.3 मि.ली./लीटर पानी की दर से सरफेक्टेंट मिलाकर छिडकाव करें।
- लहसुन फसल में माईटस नियंत्रण प्रोपारजाईट 57 ई.सी. 2.0-2.5 मि.ली./लीटर पानी की दर से छिडकाव करें।
- अमरूद में उखटा रोग का प्रकोप।
- अमरूद में उखटा नियन्त्रण हेतु प्रोपिकोनाजाॅल 25 ई.सी.1.5 मिली/ली0 की दर से वर्ष में तीन बार डेªन्चिंग (कम से कम 20 से 30 लीटर पानी का धोल) क्रमशः मानसून के प्रारम्भ में (जून के अन्तिम सप्ताह ) मानसून समाप्ति के उपरान्त (अक्टूबर का प्रथम सप्ताह) एवं फल तुडाई के उपरान्त (अप्रैल के प्रथम सप्ताह ) करे। या
- अमरूद में उखटा रोग के प्रभावी नियन्त्रण हेतु ट्राईकोड्रर्मा वीरीडी / 4ग्राम / किग्रा गोबर की खाद में मिलाकर 7 दिवस तक छाया में बोरी से ढककर एवं पानी का छिडकाव करते रहे। 7 दिवस उपरान्त आवष्यकता अनुसार मात्रा थावले में मिट्टी में मिलावे। इस विधी का प्रयोग वर्ष में तीन बार मानसून से पूर्व (जून माह) मानसून समाप्त होने पर (अक्टूबर माह)एवं अप्रेल माह में प्रति वर्ष करे।
- अमरूद में फल मक्खी का प्रकोप।
- कोटा क्षेत्र में अमरूद का फल सर्दियों में लिया जाता है तथा वर्षाकालीन फल नही ली जाती है। चूंकि वर्षाकालीन फल में फलमक्खी का प्रकोप व्यापक देखा गया है। इसके नियंत्रण हेतु फेरोमेन ट्रेप या बोटल ट्रेप लगावें। प्रलोभक शीरा या शक्कर 100 ग्राम को एक लीटर पानी में घोलकर 10 मिली. मेलाॅथियान मिलाकर घोल तैयार करे। मिट्टी के प्रत्येक प्याले में 100-150 मिली. प्रलोभक भरकर कई स्थानों पर लटका देवें।
- आम के फलों में श्याम वर्ण की समस्या।
- एन्थ्रेक्नोज के धब्बे नजर आने पर मेंकोजेब 20 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर छिड़कें।
- कददू वर्गीय सब्जियों में चूर्णिल आसिता रोग की रोकथाम हेतु नवीनतम जानकारी।
- मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल का छिड़काव करें। आवश्यकता पडने पर इस छिड़काव को 15 दिन बाद दोहरावें।
- कद्दू वर्गीय फसलों में चूर्णिल आसिता रोग प्रबंधन पर अनुसंधान कार्य जारी है।
- पपीता में लीफकर्ल (माथाबन्दी) के नियंत्रण हेतु प्रभावी रसायन ?
- पपीता में लीफकर्ल नियन्त्रण हेतु रस चूसक कीटों जैसे सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु बायोएजेन्ट लेकेनिसिलियम लेकेनी 5 मिली/लीटर पानी के तीन पर्णीय छिडकाव 10 दिन के अन्तराल से करने पर नियंत्रण किया जा सकता है।
- संतरा में फसलोत्तर प्रबंधन की जानकारी दी जावे।
- फलो में आकार को बढ़ाने के लिए अगस्त-सितम्बर माह के दोैरान मासिक अन्तराल पर 10 लीटर पानी में 2, 4-डी या जीय 3 / 15 पीपीएम के साथ मोनोपोटेशियम फाॅस्फेट/डायअमोनियम फाॅस्फेट या पोटेशियम नाइटेªट / 1ण्5 किग्रा की कटाई से पहले छिड़काव करें।
- कटाई-जब फल पूर्ण आकार का हो जाता है और नारंगी रंग दिखना शुरू कर देता है। फलो के रस का टीएसएस न्यूनतम 10 ब्रिक्स और टीएसएसः अम्ल अनुपात 14ः1 होना चाहिए।
- कटाई दो मिमी डंठल छोडकर क्लिपर्स/सेकेटर्स द्वारा की जानी चाहिए। फल को खींचने या तोडने से बचे, जो अन्यथा तने के पास की छाल को नुकसान होने पर फंगल संक्रमण को बढ़ावा दे सकता है।
- डिग्रिनिंग-विशेष रूप से डिजाइन किए गए डिग्री कक्षों/टेन्टों में 27-29 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 48 घटें के लिए और 90-95 प्रतिशत सापेक्ष आद्रता के साथ एथिलिन गैस 50 पीपीएम के साथ उपचार।
- भण्डारण उपचार-छँटाई, धुलाई, स्पंजिग, वैक्सिंग (कवकनाशी के साथ) और आकार ग्रेडिंग (छोटा/मध्यम/बड़ा) करके भण्डारित करें।
- पैकेजिंग- कुशनिंग सामग्री के रूप में कटे हुए स्ट्राॅ के साथ 7 प्लाई पीएफबी बाॅक्स (50ग्30ग्30 सेमी) आकार में या अलग-अलग फलो को लपेटकर भण्डारित करें।
- भण्डारण - 60 दिनों तक 90-95 प्रतिशत सापेक्ष आद्रता के साथ 5-6 डिग्री सेल्सियस तापमान पर।
- लहसुन के भण्डारण हेतु जानकारी दी जावे।
- लहसुन की खुदाई से 15 दिन पहले बोरोन 3 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से छिडकाव करें।
- खुदाई के पश्चात एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर लहसुन को सुखायें। खेत में सुखाना हानिकारक होता है।
- लहसुन को भंडार में रखने हेतु पूरे पौधे को बंडल बनाकर रखें या 3-4 सेंमी. तने सहित कटाई करके रखे। कंदों का पत्तियों द्वारा बांधकर ऊपर बंधी पत्तियों से लटका दे या इन्हे बांस की टोकरियों में रखें।
- लहसुन के ढेर की उचाई 3 फिट से अधिक न करें।
- लहसुन भण्डारण हेतु कम लागत भण्डार घर बास के बने हुए उपयोग मे ले सकते है।
- लहसुन के भण्डारण हेतु भण्डारगृह नमी रहित व हवादार होना चाहिए।